- 1 कप = 100 ml
- 1 Bowl = 200 ml
- 1 चम्मच = 5 gm
- 1 कटोरी = 30 gm (कच्चा)
100 gm (पका हुआ)
Instruction:
- तेल की मात्रा पूरे दिन में 4-5 छोटे चम्मच।
- प्रत्येक खाने में 2-3 घंटे का अंतराल रखें।
- मैदे से बनी वस्तुओ का उपयोग न करें। (समोसा , कचोरी, नमकीन, चिप्स, पकौड़े, बैकरी के पदार्थ आदि)
- घर का बना नाॅन-वेज सूप, 2 piece ले सकते है।
- शरबत , मिठाईयाँ, मीठा, कोल्ड-ड्रिंक्स नही ले।
- पुरे दिन में 2 फल अवष्य खांए।
- दूध या दूध से बनी वस्तुएँ (पनीर/छाछ/दही/बटर) लें।
- खाने के तुरन्त बाद सोना नही है। रात के खाने व सोने में 3 घण्टे का अन्तर होना चाहिए।
- डाॅक्टर की सलाह अनुसार व्यायाम अवष्य करें।
- ड्राईफ्रूट्स जो ले सकते है- बादाम, अखरोट, अंजीर, खजूर, मुनक्का।
यदि गर्भवती महिला का वजन सामान्य से ज्यादा है,डायबिटिस या ब्लडप्रेषर बढ़ा हुआ है या गर्भ में जुड़वा बच्चे है , के लिए डाईट चार्ट सामान्य से अलग होगा। उसके लिए डायटिषियन से सलाह ली जा सकती है।
- जाँचे (Investigations)
- कम्प्लीट ब्लड काउन्ट Complete Blood Count (CBC).
- पेषाब की जाँच Urine Test
- ब्लड ग्रुप Blood group and Rhtyping (ABO and Rh)
- टी एस एच TSH
- एच आई वी HIV
- एच बी एस ऐजी HBS Ag.
- वी.डी आर एल VDRL
- ग्लूकोस चेलेन्ज टेस्ट Blood Sugar – GCT
इसमें आपको 75 ग्राम ग्लूकोस लेने के 2 घण्टे बाद खून देना होता हैै।इसमें खाली पेट जांच कराना जरूरी नही होता । यह टेस्ट पूरी गर्भावस्था में तीन बार करना चाहिए । पहली बार – पहले तीन महिने में , दूसरी बार – 24 से 26 सप्ताह में, तीसरी बार – 32से 34 सप्ताह में , मुख्यरूप से जिनके परिवार में डायबिटिस की षिकायत है। यह जांच हर गर्भवती महिला को अवष्य कराना चाहिए क्योकि भारत अब डायबिटिस का केपिटल बन चुका है। व गर्भावस्था में डायबिटिस होना बहुत सामान्य हो गया है।
9. अल्ट्रासोनोग्राफी-
सोनोग्राफी द्वारा गर्भवती महिला में पल रहें षिषु के विकास व जन्मजात विकृतियों का पता लगाया जाता है। अभी तक गर्भस्थ षिषु में सोनोग्राफी को लेकर जितनी भी रिसर्च हुई है उससे पता चलता है कि यह बच्चे व माँ दोनो में से किसी के लिये हानिकारक नही है पर बिना कारण बार-बार सोनोग्राफी नही करवानी चाहिए।
गर्भावस्था में गर्भ के पाँचवे महिने की सोनोग्राफी सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस समय अधिकतर जन्मगत विकृतियों का पता लगाया जा सकता है। यह सोनोग्राफी 18 से 20 हफ्ते में कराई जाती है। इसे अवष्य ही कराना चाहिए।
गर्भावस्था में निम्न समयानुसार सोनोग्राॅफी की सलाह दी जाती है-
- प्रथम सोनोग्राफी:- 7-9 हफ्ते में की जाती है। – इससे निम्न जानकारी प्राप्त होती है-
1. गर्भ समय पर ठहरा है या नही। (Dating)
2. बच्चे की धड़कन आई है या नही । 7 हफ्ते में सोनोग्राफी द्वारा बच्चे की धड़कन देखी जा सकती है।
3. जुड़वा बच्चे तो नही है।
4. बच्चा नस में तो नही ठहरा है। कभी-कभी गर्भ बच्चेदानी में न ठहरकर, नस में (Fallopean tube) अण्डाषय या पेट में ठहर सकता है। यदि यह समय पर न पता लग पाये तो महिला के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है।
- 11 से 13.6 हफ्ते सोनोग्राफी – यह लगभग तीन माह होने पर की जाती है। तात्कालिक गाईड लाइन्स (Recent Guidelines) के अनुसार तो यह सोनोग्राफी सभी महिलाओं को कराना चाहिए। जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है बच्चे में मानसिक मन्दता की सम्भावना बढ़ती है। इस समय की सोनोग्राफी में कुछ ऐसे लक्षण दिखायी देते है, जिनसे इसकी सम्भावना का पता लगाया जा सकता है। व कुछ विषेष जाँचों से निष्चित (Confirm) किया जा सकता है।
- टारगेट या सामान्य 18-22 सप्ताह सोनोग्राॅफी (Target Scan /Routine 18-22 weeks Sonography)
- यह दो प्रकार की होती है-
1. सामान्य स्केन (Routine 18-22 weeks Scan) – यह एक सामान्य सोनोग्राफी होती है। जिसके द्वारा मुख्य जन्मगत विकृतियों का पता लगाया जाता है। इसमें समय व खर्च कम लगता है।
2. टारगेट स्केन (Target Scan) इसमें षिषु के प्रत्येक अंग की विस्तृत जांच कर अधिकतर जन्मगत विकृतियों का पता लगाया जा सकता है इसमें समय व खर्च दोनो ही ज्यादा लगते है। दोनो ही तरह की सोनोग्राफी में बच्चे का विकास भी देखा जाता है।
इसके बाद की सोनोग्राफी आपका डाॅक्टर निष्चित करता है। यदि नियमित जाँच (Routine Examination) के दौरान उन्हे बच्चे के विकास में कमी लग रही है या पानी कम लग रहा है या आपको हाई ब्लड प्रेषर या डायबिटिस है तो वे आपको सोनोग्राफी (Growth scan) के लिये कह सकते है। - डाॅपलर स्टडी (Doppler study) – यह जाँच भी सोनोग्राफी मषीन के द्वारा की जाती है। इसके द्वारा बच्चे की नसों का अध्ययन केया जाता है। इन नसों के अध्ययन से गर्भ में पल रहा बच्चा स्वस्थ है या नही का पता लगाया जाता है। यह सभी महिलाओ में नही किया जाता है। जटील गर्भावस्था (High Risk Pregnancies) बच्चे का विकास ठीक से नही हो पा रहा है (IOGR), बच्चे में पानी की कमी हो रही है (Oligohydramnios), हाय ब्लड प्रेषर (High BP) डायबिटिस (Diabetes) etc में Serially यदि नसों का अध्ययन किया जायें तो हम बच्चे की स्वस्थता व डिलीवरी का समय निष्चित कर सकते है।
- अन्य जाँचें – यदि गर्भावस्था के साथ ब्लड प्रेषर बड़ा हुआ है तो सीरम क्रियेटिनिन (S. Creatinine) यूरिन एल्ब्यूमिन (Urine A/b) व यूरिक एसिड (Uric Acid) अवष्य करवाना चाहिए।
यदि डायबिटिस है तो डाॅक्टर के बताये अनुसार नियमित शुगर टेस्ट कराना चाहिए।
डबल, ट्रिपल व क्वाड्रपल र्माकर (Double, Triple and Quadruple Marker).
ये जांचे गर्भ में पल रहे षिषु को डाउन सिन्ड्रोम या न्यूटल ट्यूब डिफेक्ट तो नही है- जानने के लिये (Screening) टेस्ट है। ये सभी खून के द्वारा की जाती है। वैसे तो ये जांच सभी में करवाना चाहिये पर यदि महिला 28 साल या उससे उम्र में ज्यादा है तो अवष्य करवानी चाहिये।
Double Marker:- यह 11 से 13.6 हफ्ते में की जाती है।
Triple and Quadruple Marker यह 16-22 सप्ताह में की जाती है। यदि Double Marker का समय निकल गया है तो ये जांच करवाई जा सकती है। Quadruple marker test ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ये टेस्ट यदि +ve आती है तो आगे कुछ Specific Test जैसे एमनियोसेन्टेसिस (Amniocentesis) या कोरियोनिक विलस बायप्सी (chorionic villus biopsy) करके डाउन सिन्ड्रोम का पता लगाया जा सकता है। डाउन सिन्ड्रोम (Down Syndrome) बच्चे की मानसिक मन्दता (Mental Retardetion) के साथ-साथ कुछ जन्मजात विकृतियों (Congenital Malformation) के साथ जन्म लेते है। अतः बच्चा गिराने (Abortion) की सलाह दी जाती है। कम दिन का बच्चा गिराना आसान होता है। अतः Double marker test (11 to 13.6 weeks) कराना ज्यादा उचित होता है।